Saturday, June 21, 2025
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अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत की ऊंची उड़ान, पहली बार भारतीय कंपनी को रॉकेट बनाने की तकनीक बेचेगा इसरो,एचएएल ने मारी बाजी

अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत की ऊंची उड़ान, पहली बार भारतीय कंपनी को रॉकेट बनाने की तकनीक बेचेगा इसरो,एचएएल ने मारी बाजी

बेंगलुरु: पहली बार ऐसा हो रहा है कि किसी भारतीय कंपनी को () से रॉकेट बनाने की पूरी तकनीक मिलेगी। स्पेस रेगुलेटर-कम प्रमोटर, इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड अथॉराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) ने शुक्रवार को बताया कि रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनी (PSU) (HAL) ने इसरो के (SSLV) के लिए 511 करोड़ रुपये में तकनीक हस्तांतरण (transfer of technology-ToT) हासिल किया है। यह अपनी तरह का पहला टीओटी है। यह भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर है। (PSLV) के मामले में, इस तरह से निर्माण का ठेका एक कंसोर्टियम को दिया गया था। लेकिन, के मामले में, लॉन्च वाहन बनाने का काम पूरी तरह से एचएएल को दिया जा रहा है। अब एचएएल इस रॉकेट का मालिक होगा। वह इसे बना सकेगा, बेच सकेगा और लॉन्च भी कर सकेगा।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को कैसे मिली यह सफलता

इन-स्पेस के निदेशक-तकनीकी राजीव ज्योति ने कहा, ‘इन-स्पेस ने दो चरणों में चयन प्रक्रिया की। पहले चरण में नौ उद्योगों में से छह को शॉर्टलिस्ट किया गया। दूसरे चरण में, छह में से तीन की तकनीकी-वाणिज्यिक बोलियों की एक समिति द्वारा समीक्षा की गई। अंत में एचएएल को चुना गया।’ इन-स्पेस के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा कि सरकार के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो.विजया राघवन की अध्यक्षता वाली समिति और इसरो के पूर्व निदेशक सुरेश की सह-अध्यक्षता वाली समिति ने सावधानीपूर्वक मूल्यांकन के बाद पाया कि तीनों बोली लगाने वाले तकनीकी रूप से योग्य हैं। गोयनका ने कहा, ‘फिर हमने वाणिज्यिक बोलियां खोलीं, जिसमें एचएएल की 511 करोड़ रुपये की बोली सबसे ऊंची रही।’

एक साल में 6 से 10 एसएसएलवी बनाने का है एचएएल का लक्ष्य

एचएएल ने एक स्टैंडअलोन कंपनी के रूप में बोली लगाई। अन्य दो शॉर्टलिस्ट किए गए बोलीदाता कंसोर्टिया (दो या दो से अधिक व्यक्तियों, कंपनियों, या संगठनों का एक संघ या समूह) थे। एक का नेतृत्व बेंगलुरु में अल्फा डिजाइन कर रहा था और दूसरा भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (हैदराबाद) द्वारा किया जा रहा था। तकनीक हस्तांतरित होने के बाद, एचएएल मांग के आधार पर एक साल में लगभग 6-10 SSLV बनाने का लक्ष्य बना रहा है।

आगे चलकर रॉकेट बनाने में एचएएल के पास होंगे और अधिकार

गोयनका ने कहा, ‘भुगतान चरणों में किया जाएगा। टीओटी में दो साल लगेंगे। एचएएल इसरो की पूरी मदद और मार्गदर्शन से कम से कम दो एसएसएलवी रॉकेट (प्रोटोटाइप) बनाएगा। दो साल बाद, वे अपने दम पर होंगे। प्रारंभिक टीओटी समझौता पहले दो वर्षों के लिए होगा। फिर एचएएल और इसरो के बीच एक और अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।’ उन्होंने कहा कि एक बार एचएएल अपने दम पर हो जाने के बाद, वह रॉकेट के डिजाइन को बदलने और अपने भागीदारों को चुनने के लिए भी स्वतंत्र होगा।

भारत में नई अंतरिक्ष कंपनी बनने का रास्ता हुआ साफ

भारत की अंतरिक्ष पीएसयू न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL), इन-स्पेस, इसरो और एचएएल अब एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करेंगे। अनुबंध के वाणिज्यिक भाग को एनएसआईएल द्वारा संभाला जाएगा। इन-स्पेस कई इसरो केंद्रों के सहयोग से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण को संभालेगा। गोयनका ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह भारत में किए गए सबसे जटिल टीओटी में से एक है। मुझे लगता है कि तकनीक एचएएल के बहुत सक्षम हाथों में जा रही है। वे लॉन्च वाहनों से बहुत परिचित हैं। वे इसरो के साथ कई परियोजनाओं का हिस्सा रहे हैं। उम्मीद है, हम एचएएल के अब एक रॉकेट के मालिक-सौदा करने वाले के रूप में प्रवेश करने के साथ भारत में एक नई अंतरिक्ष कंपनी बनाएंगे।’एचएएल के निदेशक-वित्त, बारेन्या सेनापति ने इन-स्पेस द्वारा लिए गए निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि बोली जीतना एचएएल के अंतरिक्ष क्षेत्र में पहले से अधिक बड़े तरीके से प्रवेश करने के बड़े लक्ष्य के अनुरूप है। उन्होंने यह भी कहा कि एक नया पोर्टफोलियो जोड़ने से इसके अन्य कार्यों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उधर गोयनका ने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार लॉन्च वाहन की जिम्मेदारी सरकार की होती है। यह भारत सरकार पर निर्भर है कि वह तय करे कि कितनी देयता उस पर टिकी हुई है और कितनी रॉकेट के मालिक को हस्तांतरित की जाएगी। एक बार अनुबंध पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद, एचएएल देश के कानून का पालन करेगा।’ यह खबर भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इससे देश में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा मिलेगा। एचएएल जैसी कंपनी के आने से अब भारत में भी प्राइवेट रॉकेट कंपनियां बन सकेंगी। इससे अंतरिक्ष के क्षेत्र में नए अवसर पैदा होंगे।एचएएल को रॉकेट बनाने की तकनीक मिलने से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अपनी राय हिंदी या अंग्रेजी में कमेंट बॉक्स में लॉग इन करके ज़रूर बताएं।

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