ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है चीन
चीन ईरान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और उसके तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। भारत भी ईरान से तेल खरीदता है। इस मामले में चीन शांत लेकिन शक्तिशाली भूमिका निभा सकता है। होर्मुज को पूरी तरह से बंद करने से चीन की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। साथ ही बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत आने वाले महत्वपूर्ण सप्लाई मार्ग भी बाधित हो जाएंगे। चीन ने ईरानी बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है। इसमें हाल ही में शुरू हुई शीआन से तेहरान तक की रेल लाइन भी शामिल है। यह रेल लाइन व्यापार को मजबूत करने के लिए बनाई गई है। एक क्षेत्रीय संघर्ष जो तेल की आपूर्ति को काट देता है और लॉजिस्टिक्स को पटरी से उतार देता है, वह बीजिंग के हित में नहीं है। इस मामले में भारत की भी कमोबेश यही स्थिति है।
पर्दे के पीछे से आर्थिक प्रभाव का इस्तेमाल होगा
एक विश्लेषक ने कहा कि चीन तेहरान के बयानों का सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं कर सकता है। लेकिन, वह पर्दे के पीछे से अपने आर्थिक प्रभाव का इस्तेमाल करेगा। अगर होर्मुज को बंद किया जाता है तो सबसे पहले चीन को नुकसान होगा। सऊदी अरब और यूएई से होर्मुज को बाईपास करने वाली पाइपलाइनें कुछ हद तक विकल्प प्रदान करती हैं। लेकिन, उनकी क्षमता सीमित है। अमेरिका ने भी ऊर्जा निर्यात बढ़ा दिया है। वह खुद को एक बैकअप सप्लायर के रूप में स्थापित कर रहा है।तेहरान की ओर से दी जा रही धमकियों के बावजूद होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना जितना आसान कहा जा रहा है, उतना है नहीं। ईरान को इससे फायदे से ज्यादा नुकसान होगा। चीन की ऊर्जा सप्लाई खतरे में है। ऐसे में ईरान को अपने प्रतिद्वंद्वियों और सहयोगियों दोनों से तेल का प्रवाह बनाए रखने के लिए दबाव का सामना करना पड़ सकता है।