चालू खाता अधिशेष का क्या मतलब है?
चालू खाता किसी देश के अंतरराष्ट्रीय लेनदेन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो भुगतान संतुलन का एक कम्पोनेंट है। यह मुख्य रूप से वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार, निवेश आय (जैसे ब्याज और डिविडेंड) और एकतरफा ट्रांसफर (जैसे विदेशी सहायता और रेमिटेंस) को रिकॉर्ड करता है। चालू खाता अधिशेष का मतलब है कि देश ने विदेश से जितनी वस्तुएं और सेवाएं खरीदी हैं, उससे कहीं ज्यादा वस्तुएं और सेवाएं बेची हैं।देश को विदेश से प्राप्त होने वाली निवेश आय (जैसे विदेशी कंपनियों में भारतीय निवेश से लाभांश) का मूल्य विदेश को किए गए निवेश आय भुगतान (जैसे भारत में विदेशी निवेश पर लाभांश) से ज्यादा है।
क्या चीन की राह पर चल पड़ा है भारत?
चीन का चालू खाता आमतौर पर बड़े सरप्लस में रहता है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। उसकी अर्थव्यवस्था निर्यात पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। चीन बड़ी मात्रा में निर्मित वस्तुओं का निर्यात करता है। बड़े चालू खाता अधिशेष से चीन के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी बढ़ोतरी हुई है। इससे उसे वैश्विक वित्तीय बाजारों में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने में मदद मिली है। हालांकि, कुछ देश इसे अनुचित व्यापार प्रथाओं और वैश्विक असंतुलन का कारण भी मानते हैं। भारत का चालू खाता सरप्लस में रहना शुरुआती ट्रेंड है। इसे मेनटेन करने के लिए आगे काफी मेहनत करनी होगी।
अमेरिका की स्थिति क्या है?
अमेरिका का चालू खाता आमतौर पर घाटे में रहता है। इसका मतलब है कि अमेरिका जितना निर्यात करता है, उससे कहीं अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है। अमेरिका एक उपभोग-उन्मुख अर्थव्यवस्था है। उसकी घरेलू मांग अक्सर उसके घरेलू उत्पादन से ज्यादा होती है, जिससे आयात बढ़ जाते हैं।
क्या कहते हैं आरबीआई के आंकड़े?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने ‘चौथी तिमाही के दौरान भारत के भुगतान संतुलन में घटनाक्रम’ नाम की रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत का चालू खाता वित्त वर्ष 2024-25 की जनवरी-मार्च तिमाही में 13.5 अरब डॉलर (जीडीपी का 1.3 फीसदी) के सरप्लस में रहा। इसका असर वार्षिक आंकड़ों पर भी पड़ा है। सालाना आधार पर देश का चालू खाता घाटा कम हुआ है। 2024-25 में यह 23.3 अरब डॉलर रहा, जो जीडीपी का 0.6 फीसदी है। जबकि 2023-24 में यह 26 अरब डॉलर था, जो जीडीपी का 0.7 फीसदी था।