Monday, July 21, 2025
HomeBlogराम-रहीम की जोड़ी बन गई सामाजिक सौहार्द की मिसाल, एक नमाजी तो...

राम-रहीम की जोड़ी बन गई सामाजिक सौहार्द की मिसाल, एक नमाजी तो दूसरा भोले का पुजारी

राम-रहीम की जोड़ी बन गई सामाजिक सौहार्द की मिसाल, एक नमाजी तो दूसरा भोले का पुजारी

शिवपूजन सिंह, प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के दशाश्वमेध घाट पर श्रावण मास में भगवान शिव को जलाभिषेक करने के लिए गंगाजल लेने वाले कांवड़ियों का जमावड़ा लगा है। अधिकांश शिवभक्त अपने मित्रों, परिजन और गांव वालों के साथ ही आते हैं, लेकिन इन्हीं कावड़ियों के बीच एक अनोखी जोड़ी दिखी, जिसको देखकर सभी चौंक रहे थे, क्योंकि बात ही कुछ ऐसी थी। वेशभूषा से ही नहीं उनके हावभाव से भी लोग अचंभित थे। दोनों एकसाथ घाट पर आए थे। सफेद कपड़ा पहने लंबी दाढ़ी वाला व्यक्ति घाट की सीढ़ियों पर बैठ गया और गेरुआ वस्त्र धारी व्यक्ति गंगा जी में स्नान करने के लिए आगे बढ़ गया। सफेद वस्त्रधारी मुस्लिम व्यक्ति सीढ़ियों पर बैठकर इंतजार करने लगा। अचानक से ही नमाज का समय हुआ तो वह घाट से उठकर घाट के पास मस्जिद में नमाज पढ़ने चला गया। कुछ ही देर में पुनः आकर सीढ़ियों पर बैठ गए और ब्राह्मण वेशधारी व्यक्ति स्नान करके वस्त्र धारण, पूजा-पाठ तिलक आदि कर रहे थे, लोग उन्हें देखते रहे। कुछ देर बाद एक कांवड़ यात्री भीमसेन से बात करने लगे। वहीं, घाट पर मौजूद लोग कौतूहल बस इस जोड़ी को निहारते और आपस में चर्चा करते रहे।

बचपन की यारी 67 साल से बरकरार

एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत के दौरान पता चला कि सामाजिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में गंगा घाट पर मौजूद जोड़ी आपस में बहुत घनिष्ठ मित्र हैं और उनकी मित्रता लगभग 67 साल पुरानी है। पढ़ाई के समय जब 07 साल की अवस्था में मित्रता हुई, जोकि आज भी बरकरार है।

दोनों मित्र हैं संस्कृत के जानकार

गेरुआ धारी माधवाकांत मिश्र संस्कृत के विद्वान हैं। वहीं, अब्दुल मजीद पक्के मुसलमान नमाजी हैं, लेकिन इंटर तक उन्होंने भी संस्कृत का अध्ययन किया है। प्रयागराज के पास की तहसील हंडिया के दो अलग-अलग गांव निवासी हैं। माधवाकांत मिश्रा भीमुरा और अब्दुल मजीद डूहुआ गांव में रहते हैं। माधवाकांत मिश्रा बताते हैं कि इंटरमीडिएट कॉलेज में संस्कृत के प्रवक्ता रहे चुके हैं।माधवाकांत मिश्रा बताते हैं कि हम दोनों मिलकर समाज को यह संदेश देते हैं कि समाज में जो जातियों को लेकर दूरियां बन रही हैं। सम्प्रदाय में विरोधाभास है, आपसी कटुता पनप रही वह समाप्त हो। आसपास के गांव में कहीं भी इस तरह की समस्या सुनने को मिलती है तो हम दोनों वहां जाते हैं और जमीनी स्तर पर उस बिखराव को दूर करने का प्रयास करते हैं। इस पथ पर चलते हुए हम लोगों को 67 वर्ष बीत गए।

सामाजिक सौहार्द का देते हैं संदेश

उन्होंने कहा कि हम दोनों लोग खासकर अपने और अन्य समुदायों के बीच जो बिखराव उनको जोड़ने का कार्य करते हैं। वहीं, अब्दुल मजीद बताते हैं कि माधवाकांत मिश्र को जय श्री राम भैया भी कहते हैं और हमारी जोड़ी को राम रहीम की जोड़ी बोलते हैं। जब कभी हम लोग साथ में किसी मैटर की पैरवी करने थाना, तहसील या कोर्ट पहुंचते हैं तो लोग बोलते हैं देखो भाई राम-रहीम की जोड़ी आ गई। हमारे बातों को अधिकारी लोग ध्यान से सुनते हैं। वैसे हम दोनों समाज को दिखाना चाहते हैं कि हम सब पहले इंसान हैं। हमारे बीच कोई भेदभाव नहीं है। सब एक ही ईश्वर की बनाए हुए हैं। हम सबको आपस में भाईचारा बनाकर संयम के साथ रहना चाहिए।

समाज विरोधी तत्वों से करते हैं सावधान

एक सवाल का जवाब देते हुए अब्दुल मजीद कहते हैं कि हर धर्म में बहुरंग हैं और ऐसे बहुरंगी हर धर्म और समाज में मौजूद हैं। हम लोगों को चाहिए कि ऐसे बहुरंगियों से दूरी बनाएं और समाज को भी बचा कर रखें। ज्यादा नहीं हम लोग कैसे मित्रता के साथ रहते हैं, इसको ही देखकर लोग ताज्जुब करते हैं, जबकि लोगों को चाहिए कि वह हम लोगों से सीख लें। आपस में एक होकर पूरे सद्भावना के साथ रहें। अपने-अपने धर्म, अपने-अपने संस्कार का पालन करें , लेकिन सामाजिक सौहार्द को बनाए रखें, यही हमारा संदेश है।

पंच परमेश्वर कहानी के किरदार जैसी जोड़ी

सच में अगर इनका कोई नजदीक से देखें तो उन्हें लगेगा कि प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर कथानक के पात्र अलगू चौधरी और जुम्मन की यारी जैसा ही है। आसपास के पूरे क्षेत्र में इनकी जोड़ी को राम-रहीम की जोड़ी के नाम से बुलाते हैं। इनकी मित्रता की मिसाल देते हैं। यह एक-दूसरे के सुख-दुख में ही नहीं गांव के अन्य लोगों के सुख-दुख में भी साथ-साथ खड़े रहते हैं।बातचीत के दौरान अब्दुल मजीद ने बताया कि उनकी मस्जिद में लाइट नहीं जलती थी तो माधवाकांत ने भाग दौड़कर करके बिजली विभाग से उनकी मस्जिद की लाइट को सैंक्शन करवाया। मंदिर में पूजा होती है तो अब्दुल मजीद भी चंदा देते हैं और लोगों के साथ खड़े रहते हैं। कभी-कभी माधवाकांत मस्जिद पहुंच जाते हैं और अब्दुल मजीद का इंतजार करते हैं तो आपसी सौहार्द की इससे बड़ी मिसाल शायद ही देखने को मिले। जहां एक ओर जाति धर्म संप्रदाय को लेकर वैमनस्य फैल रह रहा तो वहां ऐसी विलक्षण जोड़ी सारे बातों को दरकिनार कर रही है।

​ 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments