- वक्फ संपत्तियों का गैर-अधिसूचन: क्या संपत्तियों को वक्फ से हटाया जा सकता है?
- वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति: क्या यह संविधान के खिलाफ है?
- सरकारी भूमि की पहचान: क्या सरकारी जमीन को वक्फ के तहत शामिल किया जा सकता है?
अब इन सवालों का जवाब 20 मई को होने वाली सुनवाई में मिल सकता है।संसद से सुप्रीम कोर्ट तक का सफरवक्फ संशोधन बिल 2025 को संसद के दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद पारित किया गया था। 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे अपनी मंजूरी दी। लेकिन जैसे ही यह कानून बना, इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। बीजेपी शासित छह राज्यों ने इस संशोधन का समर्थन किया है, जबकि याचिकाकर्ता इसे रद्द करने की मांग कर रहे हैं।क्या है केंद्र सरकार का तर्क?केंद्र सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि यह संशोधन सिर्फ वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़ा है और इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं। सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ-बाय-यूजर (लंबे समय से वक्फ के रूप में इस्तेमाल होने वाली संपत्ति) को मान्यता देता है और किसी को वक्फ बनाने से नहीं रोकता।20 मई को क्या होगा?सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि 20 मई को वह सिर्फ अंतरिम राहत के मुद्दे पर विचार करेगा। यानी, कोर्ट यह तय करेगा कि क्या इस कानून को लागू होने से रोकना चाहिए या नहीं। अगर कोर्ट अंतरिम रोक लगाता है, तो यह केंद्र सरकार के लिए बड़ा झटका हो सकता है। लेकिन अगर रोक नहीं लगी, तो याचिकाकर्ताओं की चिंता बढ़ सकती है।यह मामला न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है। क्या सुप्रीम कोर्ट इस कानून को संवैधानिक मानेगा या इसे भेदभावपूर्ण करार देगा? 20 मई को होने वाली सुनवाई में सारी नजरें सीजेआई की बेंच पर होंगी।