अंबेडकर…जिसे लेकर लालू यादव पर साधा निशाना
यह विवाद लालू यादव के जन्मदिन के समारोह के एक वीडियो के वायरल होने के बाद शुरू हुआ। वीडियो में एक पार्टी समर्थक डॉ. अंबेडकर की तस्वीर को लालू यादव के पैर के पास रखता हुआ दिखाई दे रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, लालू यादव ने तस्वीर पर ध्यान नहीं दिया और तस्वीर को उस कुर्सी के पास रखा गया जिस पर उन्होंने अपना पैर फैलाया हुआ था। इस घटना के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने बिहार के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर इस मामले में की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी थी। इससे पहले, बिहार अनुसूचित जाति आयोग ने भी लालू यादव को डॉ. बी.आर. अंबेडकर की जयंती पर उनका अपमान करने के आरोप में नोटिस जारी किया था। कांग्रेस और RJD ने पहले BJP पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया था।
दलितों का ध्यान खींचने की कोशिश
बिहार दौर पर अंबेडकर को लेकर पीएम मोदी का बयान दलितों को लुभाने की कोशिश मानी जा रही है, क्योंकि बिहार जाति के मसले पर राजनीतिक रूप से ज्यादा मुखर है। यह भी तथ्य है कि आरजेडी को पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के साथ साथ अनुसूचित जातियों का समर्थन भी मिलता रहा है। बहरहाल, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सवर्णों से लेकर दलितों तक को हिंदू बताता रहा है। आरएसएस दलितों को लेकर समावेशी रुख अपनाता नजर आने लगा है और सबको हिंदू बताता है। आज जब पीएम मोदी ने अंबेडकर को लेकर लालू यादव पर निशाना साधा तो राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे आरएसएस के एजेंडे को ही आगे बढ़ाने के रूप देखा।
पीएम मोदी के बयान में छिपा गहरा वैचारिक उद्देश्य
वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब लालू यादव पर हमले करते हैं, तो यह केवल एक व्यक्तिगत या विपक्षी नेता पर टिप्पणी नहीं होती, बल्कि इसके पीछे एक गहरा राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्य होता है। लालू यादव पर भ्रष्टाचार, परिवारवाद, और कुशासन के आरोपों के माध्यम से पीएम मोदी महागठबंधन को अविश्वसनीय और अस्थिर दिखाने की कोशिश करते हैं। यह हमला लालू के सामाजिक न्याय के एजेंडे को भ्रष्टाचार के साथ जोड़कर वोटरों की सोच को बदलने की एक रणनीति का हिस्सा होता है।
दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति
आरएसएस का एजेंडा हमेशा जाति से ऊपर उठकर एक राष्ट्र, एक संस्कृति की बात करता है। लालू यादव जैसे नेता, जो मंडल राजनीति के प्रतिनिधि रहे हैं, इस वैचारिक सोच के विपरीत खड़े होते हैं। जब पीएम मोदी परिवारवाद बनाम परिश्रम की बात करते हैं, तो वे आरएसएस के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और वंशवाद विरोधी लाइन को आगे बढ़ाते हैं। बिहार में दलित वोट बैंक को साधने के लिए भी यह रणनीति अहम है। दलित मतदाता पारंपरिक रूप से आरजेडी और छोटे दलों के बीच बंटे रहे हैं, लेकिन बीजेपी अब उन्हें विकास, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और नए अवसरों के ज़रिए जोड़ने की कोशिश कर रही है। पीएम मोदी खुद को ईमानदार और विकास-केन्द्रित नेता के रूप में पेश करते हुए लालू यादव को भ्रष्टाचार का प्रतीक बनाकर दलितों के बीच एक बेहतर विकल्प बनने की छवि बना रहे हैं। कहा जाए तो पीएम मोदी लालू यादव पर हमला करते हुए आरएसएस की राष्ट्रवादी और वंशवाद-विरोधी सोच को बल दे रहे हैं, और साथ ही बिहार चुनाव के लिए दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की स्पष्ट राजनीतिक रणनीति पर काम कर रहे हैं।