Thursday, July 10, 2025
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OPINION: पुलिस पर हमले, कारोबारियों का मर्डर, सिवान नरसंहार, सुशासन बाबू नीतीश कुमार अब क्यों हो रहे फ्लॉप?

OPINION: पुलिस पर हमले, कारोबारियों का मर्डर, सिवान नरसंहार, सुशासन बाबू नीतीश कुमार अब क्यों हो रहे फ्लॉप?

: बिहार अपराधियों के निशाने पर है। पुलिस पर हमले, हत्या और उनके साथ मार-पीट की घटनाएं आम हो गई हैं। अपहरण की घटनाएं भी प्रकाश में आने लगी हैं। ताजा मामला पटना के गोविंद मित्रा रोड में एक व्यवसायी के लापता होने की है। घरवालों को उसके अपहरण की आशंका है। मुहर्रम के दिन एक एएसआई पर हमला हुआ। शराब की तलाश में छापे के लिए जाने वाली पुलिस टीम के पिटने की खबरें अक्सर आती हैं। में एक ही दिन तीन लोगों की तलवार से काट कर हत्या और उसी रात पटना में प्रसिद्ध व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या के बाद बिहार में बौखलाहट साफ दिख रही है। विपक्ष सरकार पर हमलावर है तो एनडीए के सहयोगी भी इन घटनाओं से असहज हैं। गोपाल खेमका भाजपा से भी जुड़े थे। उनकी हत्या से भाजपा नेताओं के मन में भी उबाल होगा ही।

बेकाबू अपराध पर हमलावर विपक्ष

विपक्षी नेता अगर नीतीश सरकार के मौजूदा कार्यकाल में बढ़ते अपराध पर हमलावर हैं तो उनकी आलोचना को खारिज करने का नैतिक साहस भी सत्ताधारी गठबंधन के नेताओं में नहीं है। तेजस्वी यादव इसे कहते हैं तो दूसरे नेता राक्षस राज भी कहने लगे हैं। नीतीश कुमार को खारिज करने के लिए विपक्ष के पास बढ़ता अपराध बड़ा अस्त्र आ गया है। 1990 से 2000 के दशक में बिहार ने लालू-राबड़ी शासन में जैसा आतंक राज देखा था, अब उसकी तुलना नीतीश कुमार के राज से होने लगी है। तब और अब के अपराधों के आंकड़ों में फर्क हो सकता है, लेकिन अपराध की प्रकृति वैसी ही है।

कहां गया नीतीश का सुशासन!

नीतीश कुमार के शासन को कभी सुशासन कहा गया था। 2005 से 2010 तक नीतीश कुमार ने अपराधियों के खिलाफ जैसा सख्त रुख अपनाया था, उसकी मिसाल दी जाती थी। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का अपराधियों के प्रति जैसा सख्त रुख रहा है, वैसा ही सख्त रवैया नीतीश कुमार ने भी तब अपनाया था। बिहार के कुख्यात क्रिमिनल्स की जगह जेल हो गई थी। आनंद मोहन, शहाबुद्दीन, अनंत सिंह जैसे आपराधिक छवि के लोगों को नीतीश कुमार ने जेल की हवा खिला दी थी। सरेआम छिनतई, छेड़खानी, अपहरण, लूट, बलात्कार और हत्या की घटनाएं रुक गई थीं। जिन सड़कों पर शाम ढलते लोग निकलने में भय महसूस करते थे, वे सड़कें गुलजार रहने लगी थीं। इसके लिए नीतीश को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिली। पर, अब स्थिति बदल गई है।

बिहार में हत्या अब रोजमर्रा की बात

हत्या की वारदात तो बिहार में रोज ही हो रही है लेकिन तीन-चार दिनों से इसकी रफ्तार तेज हो गई है। सीवान के मलमलिया में शुक्रवार को हुए नरसंहार में तीन लोग मारे गए। कई लोग जख्मी हुए। घटना सरेशाम हुई। उसी रात पटना में बिजनेस मैन गोपाल खेमका की हत्या अपराधियों ने कर दी। रविवार को नालंदा में डबल मर्डर हुआ। सोमवार को पटना में एक कारोबारी के अपहरण की जानकारी मिल रही है। खेमका की हत्या के बाद उनके घर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान गए। डेप्युटी सीएम और बीजेपी लीडर विजय कुमार सिन्हा भी गए। बाद में तेजस्वी यादव और विपक्ष के दूसरे नेताओं ने उनके घर जाकर मातमपुर्सी की। सीएम नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर उच्चस्तरीय बैठक की। इसके बावजूद अपराधी बेलगाम हैं और अपराध बेकाबू।

सुशासन खत्म, जंगल राज लौटा

नीतीश कुमार अपराध पर अंकुश लगाने के कारण ही सुशासन बाबू कहलाए गए थे। तब अपराधी भी उनसे भय खाते थे। अब उनका वैसा इकबाल नहीं दिखता। संभव है कि अपनी उम्र और बीमारी के कारण उनमें अब वैसी सख्ती की गुंजाइश नहीं बची हो। विपक्ष इस बात को दोहराता रहता है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर लगातार यह बात कह रहे हैं कि नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति ठीक नहीं। वे खुद फैसले नहीं ले रहे। बिहार की 13 करोड़ आबादी उनके हाथ में सुरक्षित नहीं है। भले ही उनका यह बयान दलगत प्रतिद्वंदिता के कारण दिया गया है, लेकिन हालात भी इसी की तस्दीक करते हैं।

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